Tarkulaha Mandir – चैत्र नवरात्र में उमड़ रहा है मां तरकुलहा के भक्तों की भीड़
चैत्र नवरात्र में उमड़ रहा है मां तरकुलहा के भक्तों की भीड़, मां तरकुलहा करती हैं भक्तों की मनोकामना पूरी
गोरखपुर से 22 किलोमीटर दूर स्थित है मां तरकुलहा देवी का मंदिर। इस मंदिर का न केवल आध्यात्मिक महत्व है बल्कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्ट्रवाद की चेतना को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस क्षेत्र के गांवों में इस मंदिर से संबंधित एक कहानी प्रचलित है। जो डुमरी रियासत के राजा स्व.बाबू बंधू सिंह की कहानी है।दअरसल बाबू बंधू सिंह मां तरकुलहा के अनन्य भक्त थे उसी साथ अंग्रेजों के विरुद्ध 1857 की क्रांति आरंभ हो गया ।बाबू बंधू सिंह अंग्रेजों को आरंभ से ही शत्रु मानते थे ।
ऐसे में बाबू बंधू सिंह अंग्रेजों के विरुद्ध छापामार युद्ध छेड़ दिया । गौरतलब है कि उस समय मां तरकुलहा देवी का मंदिर के चारो तरफ जंगल था ऐसे मे बाबू बंधू सिंह प्रतिदिन एक अंग्रेज को पकड़ते और उसे जंगल में लाकर मां को बलि दे देते और उसका नरमुंड कुएं में डालकर उसे ढक देते। गायब होते अंग्रेज़ों तत्कालीन ब्रिटिश सरकार में हड़कंप मच गया। अंग्रेज अपने गुप्तचरों और एक स्थानीय उद्योगपति के सहयोग से बाबू बंधू सिंह को गिरफ्तार कर कर लिया ।
अंग्रेजों ने बाबू बंधू सिंह को कठोर यातनाएं दीं । लेकिन बाबू बंधू सिंह नहीं टूटे। अंततोगत्वा जब बाबू बंधू सिंह को फांसी दिया जाने लगा तब मां तरकुलहा देवी छ: बार फांसी के फंदे को तोड़ दीं। सातवीं बार बाबू बंधू सिंह जब मां तरकुलहा से अपने पास बुलाने की प्रार्थना की तब फांसी सफल हुआ।
उसी समय मंदिर के पास एक तरकुल(ताड़ का वृक्ष) का ऊपरी सिरा गिर गया और उसमें से रक्त निकलने लगा । मानो मां तरकुलहा अपने बेटे को खोने का शोक मना रही हों।
इसे भी पढे –
Pingback: Gorakhpur Zoo Opening Time - गोरखपुर चिड़ियाघर खुलने का समय - Gorakhpur Local News - गोरखपुर न्यूज